अरदास
पातशाह ! तुहाडी रज़ा दी तामील करदे हुए तुहाडी निमाणी ते प्यारी साध संगत दी सेवा करदे हुए उन्हां ने मेरी झोली विच एह प्रसाद अनुभूति फूल पाये हन्न , उन्हां दा एक गुलदस्ता आप नू भेट कर रेहा हां, उन्हां दी झोली तुस्सी आप ही भर देयो
अदना सेवक
अनुभूति-अनुभव सागर
नोट 1: इन अनुभूति-अनुभव सागर की किरणों की सौगात प्रभु की छत्रछाया में रहते हुए प्रभु की निमाणी ते प्यारी साध सगंत दी सेवा करते हुए, इस दुनिया के कई स्थानों पर मिला सौगात -स्वरूप प्रसाद है । इस के प्रेरणा-स्त्रोत हैं ईलाही फकीर आदरणीय बाबा अजीत सिह जी और प्रभु-स्वरूप साध सगंत । अब यह साध सगंत के बीच प्रसाद-स्वरूप मान कर बांटा जा रहा है ताकि इन मे लगातार सृजनशीलता बनी रहे । इन किरणों की आधारशिला दुनिया के भिन्न भिन्न व्यक्तियो के माध्यम से मिले अनुभव और अनुभूतियां हैं । ऐसे अनुभव और अनुभूतियां भिन्न भिन्न व्यक्तियों के भिन्न भिन्न भी हो सकती हैं क्योकि अनुभव का आधार मानव की उस समय की मानसिक दशा पर टिकी होती है । नोट 11 इस से कई भाव हिन्दी, गुरमखी, उर्दू मे व्यक्त शाब्दिक उच्चारण प्रणाली का प्रयोग करते हुए लिया गया है, इस का आधार शब्द नहीं भाव हैं । का आधार शब्द नहीं भाव हैं।
जगदीश चन्द्र खुराना
अदना सेवक